जिनके बुते हिन्दुस्तां को छोड़ गया था तू ,
जिनकी खातिर हर धारा को मोड़ गया था तू ,
जिनको अंधेरों से लड़कर उजियारा लाना था,
बंजर धरती पर खुशियों के फूल खिलाना था,
पत्थर पर नंगे पावों में नाच रहे हैं वो ,
रोटी-रोटी हर नुक्कड़ पे बाँच रहे हैं वो।
सूरज की तरह चलना जिनको सिखलाया था ,
दूजों की खातिर जलना जिनको सिखलाया था,
था तेरा विश्वाश वो कल के राष्ट्र सुधारक हैं,
बने हुए जो सांसद, मंत्री और विधायक हैं,
बड़े-बड़े गोले मुहँ से अब दाग रहे हैं वो ,
पूंछ दबा जिम्मेदारी से भाग रहे हैं वो।
चोर-उचक्कों की है यहाँ काट रही चांदी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी।
गीता को तूने जीवन का सार बताया था ,
सत्य को जीने का तूने आधार बताया था,
कोयल के अण्डों से देखो बाज निकल आये ,
धर्म के रखवाले अब धंधेबाज निकल आये,
अच्छाई के सारे पन्ने फाड़ रहे हैं वो,
अपने अंदर के इंसां को मार रहे हैं वो।
हर तरफ देखो जल रही है काठ की हांडी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी।
जिनकी खातिर हर धारा को मोड़ गया था तू ,
जिनको अंधेरों से लड़कर उजियारा लाना था,
बंजर धरती पर खुशियों के फूल खिलाना था,
पत्थर पर नंगे पावों में नाच रहे हैं वो ,
रोटी-रोटी हर नुक्कड़ पे बाँच रहे हैं वो।
हर तरफ लूट की देखो है चल रही आंधी
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी। सूरज की तरह चलना जिनको सिखलाया था ,
दूजों की खातिर जलना जिनको सिखलाया था,
था तेरा विश्वाश वो कल के राष्ट्र सुधारक हैं,
बने हुए जो सांसद, मंत्री और विधायक हैं,
बड़े-बड़े गोले मुहँ से अब दाग रहे हैं वो ,
पूंछ दबा जिम्मेदारी से भाग रहे हैं वो।
चोर-उचक्कों की है यहाँ काट रही चांदी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी।
गीता को तूने जीवन का सार बताया था ,
सत्य को जीने का तूने आधार बताया था,
कोयल के अण्डों से देखो बाज निकल आये ,
धर्म के रखवाले अब धंधेबाज निकल आये,
अच्छाई के सारे पन्ने फाड़ रहे हैं वो,
अपने अंदर के इंसां को मार रहे हैं वो।
हर तरफ देखो जल रही है काठ की हांडी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी।
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