Friday, 20 April 2018

उड़ान (कविता)

मेरी बस चाह इतनी है मैं उड़ना  चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

सितारों के नज़ारे मैंने देखे हैं बहुत सारे 
मैं तो अब सूर्य से नज़रें मिलाना चाहता हूँ ,
मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदो की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

मैंने बचपन में सोचा था कि उड़ना है हमें एक दिन 
सफलता के शिखर तक भी पहुंचना है हमें एक दिन, 

कई पत्थर पे चढ़ के अब तलक ऊंचाई नापी है 
शिखर तक अब पहुँचने को मैं चढ़ना चाहता हूँ ,

मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ।  

जिसे मैं त्याग दूँ वो प्राण कभी मैं कर नहीं सकता 
दिखा कर ख़्वाब मन को मैं कभी भी छल नहीं सकता,

अधूरा स्वप्न भी मैंने कभी देखा न जीवन में 
इसी संकल्प से मंजिल मैं पाना चाहता हूँ, 

मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

नहीं मुझको पता ये भी की कि आगे राह कैसी है 
मुझे बस लक्ष्य पाना है मैं इतना जानता हूँ ,

अगर कांटें मिले फिर भी खुशी से पग बढ़ाऊंगा 
मैं अब काँटों पे चलके फूल चुनना चाहता हूँ ,

मेरी बस चाह इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

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