Sunday, 29 April 2018

जिंदगी एक जंग (मेरी पहली कविता )

यह ज़िन्दगी एक जंग  है 
इस जंग  के कई रंग है

कोई जीत कर हारा यहाँ  
कोई हार कर जीता यहाँ 

कई सोच है पलते यहाँ 
कई सोच है ढलते यहाँ 

सुन गर कहीं तू ढल गया 
यह सोच मत तू थम गया  

आँखों में तू सपने सजा 
उड़ने का रख तू हौसला 

हिम्मत तेरी रंग लाएगी 
आशा नयी दिखलायेगी 

बादल सभी छट  जाएगा 
सूरज नया उग आएगा 

यह जान जाएंगे सभी 
हारा नहीं था तू कभी 

और ना  कभी तू हारेगा 
इस ज़िन्दगी के जंग  में 

यह ज़िन्दगी एक जंग है 
इस जंग  के कई रंग हैं। 

शायरी-1

1. ज़िन्दगी का सफर कटता  रहा फरियादों में ,
   एक हँसी  शाम तेरे नाम का हासिल न हुआ। 

२. वो सभी छोड़ गए आधे सफर में ही मुझे,
  जिनके नक़्शे कदम पर था कभी चलना सीखा। 

3 . नहीं मिलता सुकून है अब मुझे वीराने में ,
   तेरी यादों के धागों  से, हूँ  इस तरह उलझा। 

4. आग से दिल्लगी लहरों से तुम लड़ना सीखो 
   है मोहब्बत तो फिर बेबाकी से कहना सीखो।


5 . हर तरफ़ भीड़ दीखता है हुनरबाज़ों का 
     एक बस मैं ही यहाँ पे बेहुनर निकला। 

6 . तेरी जादुई बातों का नहीं उसपे असर होगा ,
    अभी रंगों में उसने फ़र्क  करना है कहाँ सीखा। 

7.  बुझा जो रख है उसको हवा देकर कभी देखो ,
     जलते को जलाने का हुनर तो हर किसी में है। 

8 . कहीं जो कुछ  गिरे खट से तो मैं  घबरा सा जाता हूँ ,
    मेरे कन्धों पे मिलता है सुकून हर एक मुसीबत को। 

9 . तू मुझे भूल गयी मैं तुम्हें नहीं भूला 
    प्यार शायद हमारा भी एक तरफ़ा था। 

10 . जिसे देखे तो आँशु भी हँसे  वो रंग हूँ मैं ,
     ज़रा  तू देख मुड़  कर के अभी भी संग हूँ मैं। 

11 . तेरी खामोशियों से अब नहीं  शिक़वा कोई मुझको ,   
      मुझे नज़रों से दिल का हाल पढ़ना आ गया है अब। 

Friday, 20 April 2018

उड़ान (कविता)

मेरी बस चाह इतनी है मैं उड़ना  चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

सितारों के नज़ारे मैंने देखे हैं बहुत सारे 
मैं तो अब सूर्य से नज़रें मिलाना चाहता हूँ ,
मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदो की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

मैंने बचपन में सोचा था कि उड़ना है हमें एक दिन 
सफलता के शिखर तक भी पहुंचना है हमें एक दिन, 

कई पत्थर पे चढ़ के अब तलक ऊंचाई नापी है 
शिखर तक अब पहुँचने को मैं चढ़ना चाहता हूँ ,

मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ।  

जिसे मैं त्याग दूँ वो प्राण कभी मैं कर नहीं सकता 
दिखा कर ख़्वाब मन को मैं कभी भी छल नहीं सकता,

अधूरा स्वप्न भी मैंने कभी देखा न जीवन में 
इसी संकल्प से मंजिल मैं पाना चाहता हूँ, 

मेरी बस चाह  इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

नहीं मुझको पता ये भी की कि आगे राह कैसी है 
मुझे बस लक्ष्य पाना है मैं इतना जानता हूँ ,

अगर कांटें मिले फिर भी खुशी से पग बढ़ाऊंगा 
मैं अब काँटों पे चलके फूल चुनना चाहता हूँ ,

मेरी बस चाह इतनी है मैं उड़ना चाहता हूँ 
परिंदों की तरह आकाश छूना चाहता हूँ। 

Monday, 16 April 2018

गाँधी(कविता )

जिनके बुते हिन्दुस्तां को छोड़ गया था तू ,
जिनकी खातिर हर धारा  को मोड़ गया था तू ,
जिनको अंधेरों से लड़कर उजियारा लाना था, 
बंजर धरती पर खुशियों के फूल खिलाना था, 

पत्थर पर नंगे पावों में नाच रहे हैं वो ,
रोटी-रोटी हर नुक्कड़ पे बाँच रहे हैं वो। 


हर तरफ लूट की देखो है चल रही आंधी 
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी। 

सूरज की तरह चलना जिनको सिखलाया था ,
दूजों की खातिर जलना जिनको सिखलाया था,
था तेरा विश्वाश वो कल के राष्ट्र सुधारक हैं, 
बने हुए जो सांसद, मंत्री और विधायक हैं,

बड़े-बड़े गोले मुहँ  से अब दाग रहे हैं वो ,
पूंछ  दबा  जिम्मेदारी से भाग रहे हैं वो। 

चोर-उचक्कों  की है यहाँ काट रही चांदी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी। 

गीता को तूने जीवन का सार बताया था ,
सत्य को जीने का तूने आधार बताया था, 
कोयल के अण्डों से देखो बाज निकल आये ,
धर्म के रखवाले अब धंधेबाज निकल आये, 

अच्छाई  के सारे पन्ने फाड़ रहे हैं वो, 
अपने अंदर के इंसां को मार रहे हैं वो। 

 हर तरफ देखो जल रही है काठ की हांडी ,
क्या यही है तेरे ख्वाबों का भारत गाँधी। 

आबादी