Thursday, 25 January 2018

धर्म क्यों ?

धर्म  एक ऐसा शब्द जिसके जेहन में आने  भर से आदमी अच्छाई तलाशना शुरू कर  देता है।  वो तलाश जो खुद के वर्तमान से शुरू होता  है और धीरे- धीरे बढ़ते हुए समाज ,राष्ट्र,विश्व और ब्रह्माण्ड के भूत ,भविष्य को पार करते हुए अनंत तक पहुँच जाता है। 

अनंत से मेरा तात्पर्य उस बिंदु से है, जहाँ  से आगे देखने की शक्ति हमारे पास नहीं है। 

अनंत से मेरा तात्पर्य उस सिरे से है ,जिसका अंत तो है पर कहाँ, हम नहीं जानते। 
जब किसी अच्छाई  या बुराई को होते हुए देखते हैं तो इस अनंत  को समझने की इच्छा प्रबल हो जाती है। 

धर्म एक ऐसा शब्द जो न्याय और अन्याय दोनों को परिभाषित करता  है।  सत्य और असत्य के बीच अंतर स्थापित करता  है। इसका मूल स्वरुप क्या है कोई नहीं जानता ,इसे हर वो स्वरुप प्राप्त है जो कल्याणकारी है।  इसे हर उस आकर में ढाला  जा सकता है जो जीवन को जीवन बनाने में सहयोग करे। 


धर्म क्या है समझने से पहले धर्म क्यों है समझना ज़रूरी  है।

इस क्यों को समझने के लिए कुछ बिंदुओं पर  प्रकाश देना  चाहूंगा। 

उद्देश्य -जैसा कि हम जानते हैं कि  हर निर्माण के पीछे उद्देश्य निहित होता है।   धर्म की स्थापना के  पीछे भी कुछ उद्देश्य रहे होंग।  मानव विकास ने जब गति पकड़ा और हम जानवर से मनुष्य बनने की और अग्रसर हुए तो हमें एक ऐसी  संरचना की ज़रूरत महसूस हुई जो हमें एकीकृत रख सके।  जिसको आधार मानकर हम भविष्य और वर्तमान के बीच तालमेल बिठा सकें। जो  हमें मानव होने का एहसास कराये।  जिससे उन विचारों  को सबलता प्राप्त हो जो हमारे अंदर करुणा ,प्रेम ,त्याग  जैसी भावनाओं को प्रस्फुटित होते हुए देखना चाहती है। 

विश्वाश -किसी भी विचार को  सर्वसिद्ध  बनाने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण आधार है वो है 'विश्वाश' जबतक मनुष्य विश्वाश करना नहीं सीखता तबतक वो कल को नहीं देख सकता था।  कहा भी गया है कि  विश्वाश पर ही दुनिया टीकी हुई है। जबतक हम एक दूसरे पर भरोसा करना नही सीखते तबतक एक व्यवस्थित समाज की कल्पना  करना बेमानी थी  और इसके लिए एक ऐसे विचारधारा की ज़रूरत थी जो सबों के दृश्टिकोण से सही हो।  जो  प्रत्येक व्यक्ति को   हितकर लगे।  


स्वरुप - भावनात्मक आधार को व्यवहारिकता में लाने के लिए स्वरुप का होना नितांत आवश्यक है। जिस तरह बिना स्वप्न के यथार्थ की कल्पना नहीं की जा सकती ठीक उसी  प्रकार बिना माध्यम के उद्देश्य की पूर्ति संभव नहीं है। वो माध्यम भौतिक अथवा काल्पनिक दोनों हो   सकता है। भौतिक से पर्याय उस स्वरुप से है जो हमारे सामने हो। काल्पनिक से पर्याय उस स्वरुप से है जो अमिट  रूप से  हमारे विचारों  में विराजमान हो और उचित  समय पर उचित निर्णय लेने में सहायक   सिद्ध हो। 







  





Monday, 22 January 2018

पद्मावत

जकल एक बहस  हर जगह सुनने को मिल रही है।  चाय की दुकान से लेकर बड़ी - बड़ी कंपनियों के ऑफिस तक इस मुद्दे ने जगह बना ली है। एक से बढ़कर  एक मिसालें दी जाती है , इतिहास भूगोल की नयी -नयी अवधारणाएं निकल कर आ रही है। कुछ  एकदम से नकार रहे है और प्रतिबन्ध की बात कर रहे  है तो कुछ संविधान का हवाला दे समर्थन भी कर रहे हैं।

अबतक तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं  किस मुद्दे की बात कर रहा हूँ। 
जी हाँ आप एकदम सही पकड़े हैं।  मैं  बात कर रहा हूँ "पद्मावत " की जिसे  कुछ दिन पहले तक" पद्मावती"  के नाम से जान  रहे थे।

 संजय लीला भंसाली की "पद्मावती" वो फ़िल्म जिसने  निर्माण प्रक्रिया के आरम्भ से  ही विवादों के साथ गठजोड़ कर लिया था। 

फिल्म सही या विवाद, या फिर दोनों।
मैं इसमें नहीं जाना चाहता और मेरी औकात भी नहीं है इस दंगल में कूदने की , हमें तो भगवा हो या हरा सबकुछ अच्छा लगता है। बस डराता  है तो सुर्ख लाल जो इन  दोनों  के टकराने से निकल परता है। 

खैर अब थोड़ा  मुद्दे की बात हो जाए। 
कुछ सवाल जो हम सब के मन में उठ रहे हैं।  

फिल्म सही या गलत -    हमें ये पता होना चाहिए  है कि  इसके लिए  भारत सरकार ने अलग से  कानून बना रखा है (cinematograph act.1952) जिसके अंतर्गत "केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड " (C.B.F.C) आता है, जो फिल्म के सही और गलत होने का निर्णय करता है। हमें ये भी  पता होना चाहिए कि  हम एक लोकतान्त्रिक समाज में रह रहे हैं, जिसमे ना  तो सड़क पर कानून बनते हैं और ना ही अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर किसी को मारा-पीटा  जा सकता है। 

अगर आप को  किसी बात से दिक्कत हो रही है तो न्यायालय का दरवाज़ा खुला है आप खटखटा सकते हैं। 

इतिहास का सम्मान -  कुछ लोग कहते हैं कि फ़िल्में तो बस मनोरंजन का साधन है।  इसे गंभीरता से नहीं लेनी चाहिए। ये वही लोग हैं जिन्हे हमें  गंभीरता से  नहीं लेना चाहिए। 
हिन्दुस्तान में फिल्मों को लोग कितनी गंभीरता से लेते हैं, इसे बस इस बात से जाना जा सकता कि फिल्मों से प्रेरित होकर लोग यहाँ चाल-ढाल ,रंग-रूप ,स्वाभाव से लेकर आस्था तक बदल डालते हैं।  
याद करिये अमिताभ का फ्रेंच कट दाढ़ी ,संतोषी माँ, ग़जनी का हेयर स्टाइल , उपकार और बॉर्डर की  देशभक्ति और ना जाने कितनी फ़िल्में  हैं जिसने हमारे विचारों  पर  अमिट छाप छोड़े हैं।
अब जब आप ऐतिहासिक मुद्दों पर फिल्म बना रहे हो तो इतिहास का सम्मान   करना ही चाहिए।
आप जो दिखाओगे लोग उसे ही सच  समझेंगे।  अगर हर किसी की समझ आप की  तरह हो जायेगी तो फिर   आपका धंधा चौपट हो सकता है ये आप भी अच्छी तरह से जानते हैं। 
आप के कहने से लोग  फिल्मों को हलके में नहीं ले सकते।  फिल्म वो भी देखेंगे जो ना आपको जानते हैं न पद्मावती या अल्लाउद्दीन खिलजी को। 
उन्हें फ़िल्म देखने  के बाद ही इतिहास का पता चलेगा। 

विरोध और राजनीति - जब इस फिल्म का ट्रेलर रिलीज़  होता है  और विरोध शुरू होता है। भाग्य या दुर्भाग्य से तब कई राज्यों में चुनाव का बिगुल बज रहा होता  है।  और उन्ही राज्यों में से राजस्थान से सटा एक राज्य गुजरात भी होता है।  चुकी ये मुद्दा राजस्थान और राजपुताना से सम्बंधित होता है जिनकी तादात गुजरात में 5% से 7 % प्रतिशत है। 

और हिन्दू सेंटीमेंट भी इनके साथ जुड़ जाता है। इन बातों को ध्यान में   रखते हुए सभी राजनीतिक दल इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेते हैं जो मौन समर्थन का काम करती है। कुछ नेताओं के द्वारा अनाप -शनाप बयानबाजी शुरू हो जाती है जो इस मुद्दे पर आग में घी का काम करता है। ये वही नेता हैं जो इन मुद्दों का इंतज़ार मुंह बाए करते रहते हैं। ऐसे नहीं है कि  वे मुर्ख या पागल हैं  वो इसमें भी संभावनाओं को तलाशते रहते हैं।  कुछ को तो इसका   फल मंत्रिपद के रूप में मिल भी  चूका है। 

खैर यह कोई नया नहीं है हमारे देश में तो  दंगों के बल पर सरकारें बनायीं और गिरायी जाती है। 

अंत में इतना ही आप समझदार हैं।  फिल्म देखने के बाद ही कोई अवधारणा बनायें। 

Sunday, 21 January 2018

क्यों ?

कितना सहुँ कबतक लड़ूँ ,इस आग से इस धुंध से
जो फैलता ही जा रहा है अनवरत चारों तरफ।

जो कल तलक थे पूजते थे मानते देवी मुझे
ममतामयी कहते हुए थकते नहीं जो कंठ थे
होती यहाँ जिनकी सुबह थी प्रार्थना से ही मेरी
पहचानते ही क्यों मुझे ये दे रहे अब मौत हैं?

कितना सहुँ कबतक लड़ूँ ,इस आग से इस धुंध से
जो फैलता ही जा रहा है अनवरत चारों तरफ।

अपराध क्या मैंने किया कोई नहीं कहता मुझे
क्यों मिल रही मुझको सजा ये भी नहीं मुझको पता
जो पत्थरों से भीड़ गए बस  न्याय के  सम्मान को
जो सह गए हर आग को इन्साफ की खातिर यहाँ
दर्द को सुनकर मेरे ये रहनुमा क्यों मौन हैं?

कितना सहुँ कबतक लड़ूँ ,इस आग से इस धुंध से
जो फैलता ही जा रहा है अनवरत चारों तरफ।

मैं सोचती थी हर समय मैं जब जहाँ में जाउंगी
सब कह उठेंगे देखकर मुझको वहां नन्ही परी
हर कोई  मुस्काएगा पड़ते ही मुझपे एक नज़र
भगवान् से मांगेंगे सब मेरे लिए लम्बी उमर
सुन के आहट ही मेरी क्यों हर कोई बैचैन है ?

कितना सहुँ कबतक लड़ूँ ,इस आग से इस धुंध से
जो फैलता ही जा रहा है अनवरत चारों तरफ।

हर जवां दिल चाहता है उसका एक मेहबूब हो
आदमी पूरा नहीं होता बिना पत्नी यहाँ
बहु की चाहत यहाँ पर है हरेक माँ -बाप को
भाई को भी चाहिए राखी जो बांधे वो बहन
पर नहीं क्यों चाहता कोई भी अब बेटी यहाँ?

कितना सहुँ कबतक लड़ूँ ,इस आग से इस धुंध से
जो फैलता ही जा रहा है अनवरत चारों तरफ।

हरयाली

कीतनी अच्छी कितनी प्यारी
हम को लगती है हरयाली।

रंग बिरंगे फूलों वाली
झरने नदियाँ  झूलों वाली
जीवन में बढ़ना सिखला दे
ऐसे ऊँचे  टीलों वाली।

कितनी अच्छी कितनी प्यारी
हमको लगती है हरयाली।

बहती है जब हवा निराली
हिलती है डाली मतवाली
गाते हैं पक्षी कलरव कर
सोये ख्वाब जगाने वाली।

कितनी अच्छी कितनी  प्यारी
हमको लगती है हरयाली।

हमको साँसे देने वाली
गम सारे ले लेने वाली
सूरज की किरणों से जलकर
छावं हमें पहुचाने वाली।

कितनी अच्छी कितनी प्यारी
हमको लगती है हरयाली।

नित कुछ कुछ सिखलाने वाली
सदा फूल बरसाने वाली।
बाटों तो खुशियाँ बढ़ती है
हमको ये बतलाने वाली।

कितनी अच्छी कितनी प्यारी
हमको लगती है हरयाली।

हर संताप मिटाने वाली
हमको राह बताने वाली
लक्ष्य नहीं है मुश्किल कोई
ये एहसास जगाने वाली।

कितनी अछि कितनी प्यारी
हमको लगती है हरयाली।

एकीकरण

भौतिक विज्ञान में वृहत ऊर्जा उत्पत्ति के संबंध में जानने के लिए नाभिकीय विखंडन(nuclear fission) और नभिकीये संलयन(nuclear fusion) के बारे में पढ़ाया जाता है। उल्टा लग रहा होगा पहले विखंडन लिख दिया है जानबूझ कर गलती नहीं किया जाता, आगे समझ जाएंगे । 


नाभकिये विखंडन- इसमें यूरेनियम-235 पर न्यूट्रॉनों की बमबारी की जाती है तो बहुत अधिक ऊर्जा और तीन नए न्यूट्रॉन निकलते हैं ये न्यूट्रॉन यूरेनियम के अन्य नाभिक को विखंडित करते हैं और ये एक श्रंखला बन जाती है।
इसके भी दो प्रकार हैं।



1)अनियंत्रित-इस अभिक्रिया में निकले न्युट्रान पर नियंत्रण नहीं होता और यह विनाशकारी होता है।
परमाणु बम इसके उदहारण है(हिरोशिमा ,नागासाकी वाला)



2)नियंत्रित-यह धीरे-धीरे होती है और यह लाभदायक होता है।
परमाणु रिएक्टर इसके उदाहरण हैं।



अभिक्रिया अपने आप नियंत्रित नहीं होती इसे नियंत्रित किया जाता है । न्यूट्रॉनों को नियंत्रित करने के लिए कैडमियम,बोरान का उपयोग किया जाता है।
मतलब  ये है कि लोकतंत्र को भी नियंत्रित करने के लिए इन्हें तीन भागों में बांटा गया है। अनियंत्रण का परिणाम विनाशकारी ही होता है और इससे 1000 गुना खतरनाक है तीनों का एक हो जाना। क्योंकि नाभिकीय संलयन(nuclear fusion)से हाइड्रोजन बम का निर्माण होता है जो परमाणु बम से 1000 गुना शक्तिशाली होता है।
राजनीति से उठकर सोचियेगा।  

आबादी